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राजपूत वंश का क्षेत्रीय राज्य 




    • पृथ्वीराज रासो (चंदवरदाई) को आधार मानकर कुछ विद्वान राजपूतों को माउंट आबू पर्वत पर वशिष्ठ के अग्निकुंड से उत्पन्न हुआ मानते हैं। अग्निकुंड से प्रतिहार, चालुक्य, परमार व चौहान की उत्पति हुयी। 

    • कर्नल टॉड के अनुसार राजपूत शक-कुषाण तथा हूणों की संतान थे।।

     • गहड़वाल वंशः कन्नौज में गहड़वाल वंश की स्थापना चन्द्रदेव ने की। गोविन्द चन्द्र (1114-1154 ई.) के शासनकाल की विशेषता, उसकी शांति और युद्ध मंत्री लक्ष्मीधर की साहित्यिक कृतियां हैं, जिसने कृत्य कल्पतरू जैसे ग्रन्थों की रचना की। जयचंद इसी वंश का शासक था। 

    शाकम्भरी के चौहानः इस वंश का संस्थापक वासुदेव था। अजयराज ने अजयमेरू अथवा अजमेर नगर की स्थापना की।

    • इस वंश के राजा विसलदेव (1153-64 ई.) ने दिल्ली को तोमरों से विजित किया। वे एक संस्कृत नाटक हरिकेलि जैसे नाटक के लेखक थे, जिसके कुछ अंश अढ़ाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद की दीवारों पर उत्कीर्ण किए गए हैं। इस वंश का महानतम राजा राय पिथौरा अथवा पृथ्वीराज तृतीय (1179-92 ई.) था। 1191 में तराईन की प्रथम लड़ाई में उसने गोरी को हराया जबकि दूसरी लड़ाई में गोरी ने उसे पराजित किया। पृथ्वीराज का दरबारी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज रासो तथा जयानक ने पृथ्वीराज विजय की रचना की। 

    • चंदेल वंशः चंदेल वंश की स्थापना नन्नुक ने बुंदेलखण्ड के आसपास की थी। उसके पौत्र जयशक्ति के नाम पर यह प्रदेश जेजाकभुक्ति कहलाया। खजुराहों उनकी राजधानी थी। धंग के शासनकाल में खजुराहो का विश्वविख्यात मंदिर निर्मित हुआ। एक कथा के अनुसार धंग ने संगम में जल समाधि ले ली। 

    • परमार वंशः इस वंश का प्रथम स्वतंत्र एवं शक्तिमान राजा सीयक या श्रीहर्ष था।  आरम्भ में इनकी राजधानी उज्जैन में थी। पर कालांतर में, परमारों ने अपनी राजधानी धार में स्थानांतरित कर ली। 

    • वाक्पति मुंज (972-994 ई.) की राजसभा में 'नवसाहसांक चरित' का लेखक पद्मगुप्त, 'दशरूपक' का लेखक धनंजय,'यशोरूपावलोक' के रचयिता धनिक जैसे कवि कलाकार मौजूद थे। 

    इस वंश का सबसे लोक प्रसिद्ध शासक भोज परमार था। उसने अपनी राजधानी उज्जैन से हटाकर धार को बनायी थी। राजा भोज ने अपने नाम पर भोजपुर नगर (बिहार) बसाया तथा भोजसर नामक तालाब का निर्माण किया। उसने केदारेश्वर, रामेश्वर, सोमनाथ, संडार आदि अनेक मंदिरों का निर्माण कराया था। वह अपनी विद्वता के कारण 'कविराज' उपाधि से विख्यात था। तत्व परीक्षा, सिद्धांतसंग्रह आदि ग्रंथों की उसने रचना की। उसने उदयपुर में नील कंठेश्वर मंदिर बनवाया था। भोज ने चिकित्सा विज्ञान पर आयुर्वेद सर्वस्व एवं स्थापत्यशास्त्र पर समरांगणसूत्रधार की रचना की। उसने धार में भोजशाला के रूप में एक महाविद्यालय की स्थापना कर उसमें वागदेवी की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा की। 

    • सेन वंशः सेन वंश का संस्थापक सामन्त सेन या उसका पुत्र हेमन्तसेन था। सेन वंश के वास्तविक संस्थापक विजयसेन (1095-1158 ई.) को माना जाता है।

    बल्लालसेन ने स्मृतियों के अनुरूप दानसागर और खगोल विज्ञान पर अद्भुत सागर नामक दो ग्रन्थों की रचना की। बल्लालसेन कुलीनवाद के नाम से प्रसिद्ध एक सामाजिक आन्दोलन का भी प्रचलनकर्त्ता था, जिसका उद्देश्य वर्ण व्यवस्था या जाति कुलीनता एवं रक्त की शुद्धता बनाए रखना था।

    लक्ष्मणसेन ने बंगाल की प्राचीन राजधानी गौड़ के निकट एक अन्य राजधानी लक्ष्मणवती (मध्यकाल का लखनौती) नदिया जिले में बनाया। लक्ष्मणसेन का मंत्री हलायुद्ध था तथा कवि जयदेव इसके दरबारी कवि थे। उसके शासन काल में तुर्की सेनानायक मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने बंगाल पर आक्रमण किया और तुर्की सेना सेन राज्य की राजधानी लखनौती जा पहुंची। 

    • कलचुरी वंशः त्रिपुरी के इस वंश का संस्थापक वामराजदेव था। कोक्कल प्रथम इस वश का प्रमुख शासक था। 

    इस वंश के युवराज प्रथम (915-945 ई.) के दरबार में रहकर राजशोखर ने 'विद्धसालभंजिका' लिखी थी, जिसमें युवराज को 'उज्जयिनी भुजंडा' कहा गया। युवराज प्रथम ने 'केयर वर्ष' की उपाधि ली थी। 

    उड़िसा का गंग वंशः पूर्वी गंग वंश के अनन्तवर्मन चोड गंग (1076-1148 ई.) के समय पुरी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण हुआ। नरसिंह वर्मन प्रथम (1238-64 ई.) के समय कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण हुआ। 

    केसरी वंश के जलाली केसरी ने 11वीं शताब्दी में भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर का निर्माण करवाया। 

    कश्मीर का कर्कोट वंशः ललितादित्य ने कश्मीर में प्रसिद्ध मार्तण्ड (सूर्य) मंदिर के अतिरिक्त भूतेश के शिव मंदिर एवं परिहासकेशव के विष्णु मंदिर का निर्माण कराया। 

    कश्मीर के उत्पल वंश का महत्वपूर्ण शासक अंवतिवर्मन था। 

    • कश्मीर के लोहार वंश के शासक क्षेमगुप्त की मृत्यु के बाद 958 ई. में रानी दिदा ने कश्मीर पर पचास वर्षों तक शासन किया। इसी वंश का शासक हर्ष क्रूर-अत्याचारी भी था। उसने प्रजा से बलपूर्वक कर वसूला। राजतंरगिणी के लेखक कल्हण उसका आश्रित कवि था। 

    • वनवासी के कदंबः ये मानव्य गोत्रीय ब्राह्मण थे। मयूरशर्मन ने कदंब कुल की स्थापना की और वनवासी को अपनी राजधानी बनाया। कहा जाता है कि मयूरशर्मन ने 18 अश्वमेघ यज्ञ किए थे। 


    त्रिसत्तात्मक संघर्ष


    कन्नौज पर अधिकार के लिए 8वीं सदी के मध्य से आरंभ हुए राष्ट्रकूट, पाल तथा गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के बीच के युद्ध को 'त्रि-पक्षीय संघर्ष' के नाम से जाना जाता है।

     • त्रि-पक्षीय संघर्ष का आरंभ प्रतिहार शासक वत्सराज ने आरंभ किया। इस संघर्ष में दक्षिण से उत्तर पर आक्रमण करने वाले 'राष्ट्रकूट' प्रथम शक्ति थे।

     त्रि-पक्षीय संघर्ष लगभग 100 वर्षों तक चला तथा अंत में प्रतिहार शासक, नागभट्ट द्वितीय के पक्ष में समाप्त हुआ, जिससे कन्नौज पर प्रतिहारों का वर्चस्व दो शताब्दियों तक रहा। 


    गुर्जर प्रतिहार वंश



    प्रतिहार को 'गुर्जर-प्रतिहार' इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनकी उत्पत्ति गुजरात अथवा द.प. राजस्थान में हुई थी। 

    • छठी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हरिश्चन्द्र ने जोधपुर के निकट 'मंदौर' में प्रतिहार वंश की नींव रखी। प्रतिहारों के अभिलेख उनका मूल श्रीराम के भाई लक्ष्मण से जोड़ते हैं। 

    • मिहिरभोज की ग्वालियर प्रशस्ति के अनुसार नागभट्ट प्रथम (730-56 ई.) ने अरबों के आक्रमण को रोका।

     मिहिरभोज के सिक्कों में उसे 'आदिवराह' कहा गया है। अरब यात्री अलमसूदी ने उसे अलबौरा' कहा है। अरब व्यापारी सुलेमान उसी के समय भारत आया था। 

    महेन्द्रपाल प्रथम के दरबार में महाकवि राजशेखर रहता था जिसने कर्पूर मंजरी, काव्यमीमांसा, बाल रामायण आदि ग्रन्थों की रचना की।

     'राज्यपाल' ने 991 ई. में सुबुक्तगीन के विरुद्ध राजा जयपाल को तथा 1008 ई.में राजा आनन्दपाल को सहायता दी थी। 1018 ई. में महमूद गजनवी के कन्नौज आक्रमण के समय राज्यपाल राज्य छोड़कर भाग गया था 

     'अलमसूदी' के अनुसार प्रतिहारों के पास भारत में सर्वोत्तम घुड़सवार सैनिक थे। 


    पाल वंश 


    • आठवीं शताब्दी में बंगाल की राजनीतिक मत्स्य न्याय की स्थिति में पंहुच गई थी। इस स्थिति से उबरने के लिए सामंतों ने 'गोपाल' को 750 ई. में अपना राजा चुना। 

    • गोपाल ने पालवंश की नींव डाली। वह बौद्ध धर्म से प्रभावित था। 

    • धर्मपाल (770-810 ई.) के शासन काल में कन्नौज के लिए त्रिदलीय संघर्ष आरंभ हुआ। गुजराती कवि सोड्ढ़ल ने 'उदय सुंदरी कथा' में उसे 'उत्तरापथ स्वामी' की उपाधि से विभूषित किया था। उसने मुगिरी (मुंगेर) को अपनी राजधानी बनाया। 

    • देवपाल (810-850 ई.) के समय पाल साम्राज्य चरमोत्कर्ष पर था। अरब यात्री सुलेमान उसे सर्वश्रेष्ठ राजा मानता था। परंतु उसे प्रतिहार शासक मिहिरभाज ने कई बार पराजित किया। 

    • महिपाल प्रथम को पालवंश का द्वितीय संस्थापक भी कहा जाता है। महिपाल द्वितीय के समय कैवर्त नेता दित्य ने विद्रोह कर अपनी स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली। 

    • संध्याकर नंदी के अनुसार रामपाल (रामचरित के नायक) ने कैवर्त नेता भीम को पराजित किया। 

    • गोपाल ने ओदंतपुर का प्रख्यात विहार बनवाया। पालवंश बौद्ध धर्म को राजाश्रय प्रदान करने वाला भारत का अंतिम राजवंश था। 

    • धर्मपाल ने विक्रमशिला में बौद्ध विहार की स्थापना की तथा गया में चतुर्मख महादेव की मूर्ति स्थापित करवाया। 

     देवपाल के शासन काल में शैलेन्द्रवंशीय राजा बलपुत्रदेव ने नालंदा में एक विहार बनवाया। 

    • अरब यात्री सुलेमान ने पाल साम्राज्य को 'रूहमा' कहा है। 


    वल्लभी का मैत्रक वंश 



    • मैत्रकों ने गुप्त साम्राज्य के अवशेष पर वल्लभी राज्य की स्थापना की। इसका संस्थापक सेनापति भटार्क था। 

    • महाकवि भट्टी बल्लभी नरेश ध्रुवसेन चतुर्थ के दरबार में रहता था। 

    • बल्लभी बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध केन्द्र था। नाग वंश . 'नाग' लोग प्राचीन भारत के नागोपासक अनार्य निवासी थे तथा पुराणों के अनुसार नागवंश की राजधानी पदमावती थी। 'नवनाग' ने नवनाग वंश की स्थापना की थी। जिसका नाम भार- शिव था। चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का विवाह नागवंशी राजकुमारी कुबेरनागा के साथ हुआ। वह महादेवी थीं और प्रभावी गुप्त की मां थीं।


     मौखरि वंश 



    • पाणिनि ने 'अष्टाध्यायी' में यह शब्द दिया है। छठी ई. में एक मौखिर वंश गया के पड़ोस में सतारूढ़ था। इसका संस्थापक यज्ञ वर्मा था। बाद में कन्नौज मौखरि वंश की राजधानी बन गया। इस वंश के अंतिम राजा ग्रहवर्मा ने थानेश्वर शासक हर्षवर्द्धन की बहन राज्यश्री से विवाह किया था। 


    हूण 



    • हूणों ने पांचवीं शताब्दी के मध्य में बड़ा आक्रमण किया था। हूण नेता तोरमाण ने 500 ई. के आस- पास मालवा में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। 

    • हूण चीन के पड़ोस में रहने वाले खनाबदोश थे। भारत में आने वाले हूण श्वेत हूण थे जो कि ऐपथलाइटस के नाम से जाने जाते थे।

    • 'मिहिरकुल' सबसे प्रसिद्ध हूण शासक था। मालवा के शासक यशोधर्मा और बालादित्य ने हूण शक्ति को अंतिम रूप से समाप्त कर दिया। 

    • मिहिरकुल के सिक्कों पर शिव के बैलों के चित्र हैं। 

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