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षड् दर्शन


सांख्य दर्शनः इसके प्रवर्तक महर्षि कपिल को माना जाता है। इसका सबसे प्राचीन तथा प्रामाणिक ग्रंथ 'सांख्यकारिका' है जिसकी रचना ईश्वर कृष्ण ने की थी। सांख्य दर्शन का मुख्य आधार है 'सत्यकार्यवाद'।



 योग दर्शनः यह वस्तुतः सांख्य का व्यावहारिक पक्ष है। इसका प्रवर्तक महर्षि पतंजलि को माना जाता है, जिनका ग्रन्थ  'योग सूत्र' इस दर्शन का मूल है।



न्याय दर्शनः न्याय और वैशेषिक एक-दूसरे के साथ सम्बन्धित हैं। इनका प्रवर्त्तन गौतम ने किया, जिन्हें अक्षपात भी कहा जाता है। इसका मूल ग्रन्थ गौतमकृत न्यायसूत्र है, जिस पर वात्स्यायन ने न्यायभाष्य नामक टीका लिखी है। उद्योत्तक, वाचस्पति, उदयन, जयन्त आदि इसके कुछ अन्य दार्शनिक हैं। 



वैशेषिक दर्शनः वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कणाद हैं जिन्हें कणशुक, उलूक तथा काश्यप नामों से भी जाना जाता है। उनका वैशेषिक सूत्र इस दर्शन का मूल प्रामाणिक ग्रन्थ है। प्रशस्तपाद कृत पदार्थ धर्म संग्रह वैशेषिक सूत्र पर टीका है। श्रीधर, प्रशस्तपाद, केशव मिश्र तथा विश्वनाथ इसके अन्य व्याख्याकार हैं। यह दर्शन 'विशेष' नामक पदार्थ पर बल देते हुए उसकी विस्तृत विवेचना करना है, जिससे इसे वैशेषिक नाम दिया गया है। इस दर्शन ने परमाणुवाद सिधांत का प्रतिपादन किया। इसके अनुसार संसार के सभी द्रव्यों का निर्माण चार प्रकार के परमाणुओं-पृथ्वी, जल, तेज तथा वायु से होता है।



 पूर्व मीमांसाः इसके प्रणेता जैमिनी हैं, जिनका ग्रन्थ मीमांसा सूत्र इस दर्शन का सूत्र शबर स्वामी ने इस पर विस्तृत टीका लिखी है। कुमारिल भट्ट तथा प्रभाकर इसके अन्य दार्शनिक हैं, जिनके नाम पर मीमांसा के दो स्वतंत्र सम्प्रदायों का प्रचलन हो गया। मीमांसा का प्रधान विषय धर्म बताया गया है। इसके अनुसार वेद ही धर्म के मूल हैं।



 उत्तर मीमांसा या वेदांतः वेदों का ज्ञानमार्गी अंश वेदान्त कहा जाता है। इसे उत्तर मीमांसा भी कहा जाता है। इसके प्रवर्तक बादनारायण है। वेदान्त का अर्थ है वेद का अंत। इस दर्शन के मूल ग्रंथ ब्रह्मसूत्र पर शंकराचार्य तथा रामानुजाचार्य ने काव्य लिखे हैं। उपनिषद्, गीता तथा बादरायणकृत वेदान्त सूत्र ही वेदान्त दर्शन के आधार हैं। उनके आधार पर वेदान्त की भिन्न-भिन्न शाखाओं का विकास हुआ; जैसे अद्वैतवाद, विशिष्टा द्वैतवाद, द्वैतवाद और द्वैताद्वैतवाद।

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