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भागवत धर्म 



 भागवत धर्म इसका उदय मौर्योत्तर काल में हुआ परंतु वैदिक काल में भी इनकी चर्चा है। 


भागवत धर्म के संस्थापक भगवान कृष्ण वृष्णीवंशीय यादव कुल के थे। 

वासुदेव कृष्ण का सर्वप्रथम उल्लेख छांदोग्य उपनिषद् में देवकी के पुत्र एवं अंगिरस के शिष्य के रूप में हुई। मेगस्थनीज ने कृष्ण को हेराक्लीज नाम से उल्लेख किया है। 

जैन ग्रंथ उत्तराध्ययन सूत्र में वासुदेव (केशव) का संबंध जैन तीर्थकर अरिष्टनेमि के साथ बताया गया है।

 विष्णु को प्रधान इष्टदेव मानने वाले भक्त वैष्णव' कहे गये। वैष्णवों की दृष्टि में विश्व विष्णु की ही शक्तियों की अभिव्यक्ति है। 

भगवत गीता में अवतार सिद्धांत का प्रतिपादन हुआ है। विष्णु के अवतारों की संख्या अधिकतम 24 है परंतु मत्स्य पुराण में विष्णु के 10 अवतार  अधिक प्रख्यात हुए। ये हैं- मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, बलराम, बुद्ध और कल्कि। 

ऐतरेय ब्राह्मण में विष्णु का उल्लेख सर्वोच्च देवता के रूप में हुआ है। 

नारायण का प्रथम उल्लेख शतपथ ब्राह्मण मे मिलता है।

 वासुदेव जो कृष्ण का प्रारम्भिक स्वरूप है, पाणिनी के युग में प्रचलित था। वासुदेव की उपासना करने वाले 'वासुदेवक' कहे जाते थे। 

पतंजलि के अनुसार वासुदेव विष्णु के रूप थे। 

ऋग्वेद में देवता के रूप में विष्णु की उपासना की गयी है। 

पाँचरात्र अथवा वैष्णव धर्म का ज्ञान तत्व: तीसरी शती ई. पू. के लगभग पांचरात्र मत का विकास हुआ। 

पांचरात्र मत में कृष्ण विष्णु का तादात्म नारायण से स्थापित किया गया है। पांचरात्र धर्म में कृष्ण के साथ-साथ चार अन्य देवताओं की भी अराधना होती थी। वे थे-संकर्षण, प्रद्युम्न, साम्ब एवं अनिरुद्ध। उन्हें वैष्णव सम्प्रदाय का 'चतुर्दूह' कहा जाता है। पांचरात्र साहित्य की कुछ संहिताएं चौथी और सातवीं सदी के बीच कश्मीर में लिखी गयीं;

 वायु पुराण में भागवत धर्म के निम्नलिखित उपास्यों का उल्लेख मिलता है; 

संकर्षणः रोहिणी पुत्र 
वासुदेवः देवकी पुत्र 
प्रद्युम्नः रूक्मणी पुत्र 
सांबः जांबवती पुत्र 
अनिरुद्धः प्रद्युम्न पुत्र 

प्रथम शताब्दी ई.पू. के मोरा अभिलेख (मथुरा) में पांच वृष्णि वीरों के पूजन का उल्लेख मिलता है; बलराम (संकर्षण),कृष्ण, प्रद्युम्न, अनिरूद्ध व सांब
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गुप्त काल में वैष्णव धर्म अपनी पराकाष्ठा. गुप्त सम्राटों की मुद्राओं पर उनकी उपाधि पर था। तत्कालीन युग में विष्णु या नारायण अथवा नर-नारायण का पूजन और मूर्ति निर्माण बहुत अधिक प्रचलित था।

 'परम भागवत' उत्कीर्ण है, जो उनके वासुदेव उपासक और वैष्णव धर्मावलम्बी होने का प्रबल प्रमाण है। 

चतुर्वृह पूजा का सर्वप्रथम उल्लेख विष्णु संहिता में मिलता है। चतुर्वृह में चार वृष्णि वीरों की पूजा होती है। 

गंगाधर अभिलेख में विष्णु को मदसूदन के नाम से अभिहित किया गया है। उड़ीसा स्थित उदयगिरि में चतुर्भुज विष्णु की एक प्रतिमा है, जो 400 ई. की है। 

कुमारगुप्त के गढ़वा अभिलेख में विष्णु को भागवत कहा गया है। स्कन्दगुप्त कालीन जूनागढ़ का अभिलेख 456 ई. में विष्णु मन्दिर के निर्माण का वर्णन करता है तथा वामन रूपधारी विष्णु द्वारा बालि से लक्ष्मी को छल से हर लेने की बात उल्लिखित करता है।
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स्कन्दगुप्त का यह जूनागढ़ अभिलेख और बुद्धगुप्त का ऐरण स्तम्भ लेख विष्णु स्तुति से ही आरम्भ होता है।

 स्कन्दगुप्त के ही भीतरी स्तम्भ लेख से पता चलता है कि गुप्त राज्य की ओर से वासुदेव कृष्ण की प्रतिमा की उपासना हेतु एक ग्राम अनुदान दिया गया था।

 महरौली के लौह स्तम्भ से ज्ञात होता है कि चन्द्र नामक सम्राट ने विष्णु ध्वज का निर्माण करवाया था। पूर्वी चालुक्यों का राज्य चिह्न गरुड़ था, जो उनके वैष्णव होने का प्रबल प्रमाण है।

 अमरसिंह ने अपने ग्रन्थ अमरकोश में विष्णु के 39 विभिन्न नामों की चर्चा करते हुए वासुदेव को उनका पिता माना है।

 खलीमपुत्र दानपत्र से विदित होता है कि विष्णु का पूजन 'ओम् नमो नारायणः' से उल्लेख है। 

दक्षिण भारत में भागवत धर्म के उपासक संत आलवार कहे जाते थे। दक्षिण में कुल 12 आलवार सन्त प्रसिद्ध हुए। इन संतों की रचनाओं का संग्रह 'नालाइरम्' के नाम से जाना जाता है। 

12 आलवार संत हैं; पोरगे, भूतत्तालवार, मैयालवार, तिरुमालिसै आलवार, नम्मालवार; मधुरकवि आलवार, कुलशेखरालवार, पेरियालवार, आण्डाल, ताण्डरडिप्पोडघ्यिालवार, तिरुरपाणोलवार व तिरुमगैयालवार 

अन्दाल एक महिला आलवार सन्त थी।

 दक्षिण भारत में वैष्णव धर्म से संबंधित संतों में रामानुज का प्रमुख स्थान है। उनका जन्म 938 शक सं. में श्रीपेरंबदुर में हुआ था। कांची के यादवप्रकाश के वे शिष्य थे, किन्तु बाद में उनसे अलग होकर स्वतन्त्र चिन्तन करने लगे। वेदान्तसार, वेदान्त संग्रह, वेदान्त दीप, ब्रह्मसूत्र, भगवतगीता भाष्य आदि उनके प्रमुख ग्रन्थ हैं। 

यह आगे चलकर माधवाचार्य ने शंकर के अद्वैत और रामानुजम के विशिष्टाद्वैत के प्रतिकूल पांच नित्य भेदों का वर्णन किया। 

वैष्णव धर्म के अर्न्तगत निम्बार्क सम्प्रदाय का भी विकास हुआ। निम्बार्क तैलंग ब्राह्मण थे। 


वैष्णव धर्म का प्रसार महाराष्ट्र में भी हुआ। इसका प्रधान केन्द्र भैमरथी नदी के तट पर बसा पण्ढरपुर नामक नगर था जहां बिठोबा का मन्दिर स्थित है।

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