महात्मा बुद्ध के आविर्भाव के पूर्व भारतवर्ष 16 महाजनपदों में विभक्त था। बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तरनिकाय में इनके नाम निम्न प्रकार मिलते हैं।
जनपद राजधानी
1. मगध : राजगृह (गिरिव्रज)
2. अंग :चंपा
3. काशी : वाराणसी
4. कोशल :अयोध्या/श्रावस्ती
5. वज्जि : मिथिला/विदेह
6. चेदि : शक्तिमती
7. मल्ल : कुशावती
8. कुरु : इंद्रप्रस्थ
9. वत्स : कौशाम्बी
10 पांचाल : अहिच्छत्र/कांपिल्य
11. शूरसेन : मथुरा
12.मत्स्य : विराटनगर
13. अश्मक : पोतना
14. अवन्ति : उज्जयिनी एवं महिष्मती
15. कम्बोज : हाट
16.गन्धार : तक्षशिला
भगवती सूत्र (जैन ग्रंथ) में भी 16 महाजनपदों का उल्लेख किया गया है। जैन सूची में मालवा और बौद्ध सूची के क्रमशः अवन्ति और मल्ल हैं। परन्तु शेष जनपदों में अन्तर है।
पुराणों के अनुसार मगध के सबसे प्राचीन राजवंश का संस्थापक वृहद्रथ था। वह जरासंध का पिता एवं बसु वैद्य उपरिचर का पुत्र था।
मगध की आरम्भिक राजधानी वसुमति या गिरिव्रज की स्थापना का श्रेय वसु को था। वृहद्रथ का पुत्र जरासंध एक पराक्रमी शासक था, जिसने अनेक राजाओ को पराजित किया। रिपुंजय इस वंश (वृहद्रथ) का अंतिम शासक था।
बौद्ध ग्रंथों अनुसार मगध का प्रथम शासक बिम्बिसार था। वह हर्यक वंश का संस्थापक था। बौद्ध एवं जैन ग्रंथ इस वंश को हर्यक वंश कहते हैं। दीपवंश में बिम्बिसार के पिता का नाम बोधिस मिलता है जो राजगृह का शासक था। मत्स्य पुराण में उसका नाम क्षेत्रौजस तथा जैन साहित्य में 'श्रोणिक' कहा गया है।
आरम्भ में गिरिव्रज इसकी राजधानी थी, किन्तु बाद में 'राजगृह' को उसने अपनी राजधानी बनाया।
उसने अपने समय के प्रमुख राजवंशों से वैवाहिक संबंध स्थापित कर अपनी स्थिति सुदृढ़ की। उसने लिच्छवि गणराज्य के शासक चेटक की पुत्री चेलना के साथ विवाह कर मगध की उत्तरी सीमा को सुरक्षित किया। उसने कोशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला के साथ विवाह कर स्थापित किया। इस विवाह के फलस्वरूप दहेज में एक लाख वार्षिक आय का काशी का प्रान्त भी प्राप्त हो गया। उसने मद्र देश (कुरु के समीप) की राजकुमारी क्षेमा के साथ अपना विवाह कर मद्रों का सहयोग तथा समर्थन प्राप्त कर लिया।
जब अवंति का राजा प्रद्योत पांडु रोग (पीलिया) से पीड़ित हुआ तो उसने अपने राज वैद्य जीवक को उसके उपचार के लिए भेजा।
उसने अंग राज्य पर आक्रमण किया। अंग का राजा ब्रह्मदत्त मारा गया और अंग राज्य मगध में मिला लिया गया।
जैन तथा बौद्ध ग्रंथ दोनों ही बिम्बिसार को क्रमशः जैन तथा बौद्ध धर्म का अनुयायी होने का दावा करते हैं। बिम्बिसार की महात्मा बुद्ध से दो बार भेंट हुई थी। बिम्बिसार ने उनका भारी सम्मान किया था और स्वयं ध र्म स्वीकार कर लिया था। उसने बौद्ध विहार बनवाने हेतु एक बाग बौद्ध संघ को समर्पित किया था। उसकी धार्मिक नीति बड़ी उदार थी और उसने जैन तथा बौद्ध दोनों धर्मों को राजकीय सहायता व संरक्षण दिया था।
विद्या-कलाः
राज्य में विद्या-कला को प्रोत्साहन मिलता था। जीवक राज्य का प्रमुख वैद्य था। उसने तक्षशिला में शिक्षा प्राप्त की थी। वह आयुर्वेद की कौमारमृत्य शाखा का विशेषज्ञ था। राजगृह में भवनों का निर्माण प्रसिद्ध वास्तुकार महागोविन्द ने किया था।
अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार की हत्या कर बलपूर्वक सिंहासन पर अधिकार कर लिया। उसे 'कुणिक' कहा जाता था।
कांशी के प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वजिरा का विवाह अजातशत्रु से कर दिया। अजातशत्रु के समय में काशी का प्रान्त अंतिम रूप से मगध में मिला लिया गया।
अजातशत्रु का दूसरा युद्ध वैशाली के लिच्छवियों से हुआ। वज्जि संघ को परास्त करना कठिन कार्य था, अत: मगध के महामंत्री वस्सकार ने कूटनीति से काम लिया। उसने अपने गुप्तचरों को भेजकर वज्जिसंघ में फूट उत्पन्न कर दी।
इस युद्ध में उसने 'महाशिलाकंटक' तथा 'रथमूसल' नामक शस्त्रों का भी प्रयोग किया था। इस विजय के परिणामस्वरूप अजातशत्रु ने वैशाली पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
उसके शासनकाल के आठवें वर्ष में बुद्ध को महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था। उसके शासनकाल में राजगृह की सप्तपर्णि गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था।
उदयिन के शासनकाल की सर्वप्रमुख घटना गंगा और सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र नामक नगर की स्थापना है। इसे कुसुमपुर भी कहा जाता है। उसने राजगृह से यहां पर अपनी राजधानी स्थानान्तरित की। वह जैन मतानुयायी था।
बौद्ध ग्रंथों के अनुसार शिशुनाग ने 18 वर्ष और पुराणों के अनुसार 40 वर्षों तक शासन किया। शिशुनाग के शासनकाल की सबसे प्रमुख घटना अवन्ति के साथ युद्ध है। इस समय तक प्रद्योत की मृत्यु हो चुकी थी। शिशुनाग ने उसे युद्ध में परास्त कर अवन्ति पर अधिकार कर लिया और उसे मगध साम्राज्य का एक भाग बना लिया। शिशुनाग ने अपनी राजधानी वैशाली में बनायी या वैशाली मगध साम्राज्य की दूसरी राजधानी बन गयी।
कालाशोक (काकवर्ण) ने अपनी राजधानी पुनः पाटलिपुत्र में स्थानान्तरित कर दी।इसके बाद पाटलिपुत्र ही मगध की राजधानी रहा। उसके शासनकाल में द्वितीय बौद्ध संगीति हुई थी।
शिशुनाग वंश के पश्चात नन्दवंश की स्थापना हुई। भारतीय तथा विदेशी दोनों ही साक्ष्य नंदों को शूद्र या निम्न वंशीय प्रमाणित करते हैं। इस वंश की स्थापना उग्रसेन या महापद्म ने की। पुराणों में महापद्म को 'सर्वक्षत्रान्तक' (सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला) और 'द्वितीय परशुराम' कहा गया है।
नन्द राजा ने कलिंग पर आक्रमण किया था और वहाँ पर एक नहर अथवा बाँध का निर्माण किया था और उस देश से एक जिन की मूर्ति ले आया था।
इतिहासकार प्लिनी के अनुसार “शक्ति और वैभव के मामले में प्रासी (पूर्वी प्रदेश) सम्पूर्ण भारत में श्रेष्ठ थी। इसकी राजधानी पालिबोथ्र थी।
" कर्टियस के अनुसार गंगारीदे और प्रासी के शासक अग्रामेश (धननन्द) के पास 20,000 घुड़सवार, 2,00,000 पैदल सैनिक, 2000 रथ और 3000 हाथियों की सेना था।
इस वंश का अतिंम शासक धननन्द था, जो सिकन्दर का समकालीन था। उसे यूनानी लेखकों ने अग्रमीज (उग्रसेन का पुत्र) कहा है। अन्तिम शासक धननंद एक अत्याचारी शासक था। उसके विषय में कहा जाता है कि वह प्रजा पर बहुत अधिक और अनुचित कर लगाता था। उसने चमडे, गोंद, पेड़ और पत्थर पर भी कर लगाया था। उसने 80 कोटि धन गंगा के गर्भ में छुपा कर रखा था।
नन्द शासक जैन धर्मावलम्बी थे। घनानन्द के जैन अमात्य, शकटार तथा स्थूलभद्र थे।
पूर्व मौर्यकालीन गणराज्य
1. कपिलवस्तु के शाक्य
2. रामग्राम के कोलिय
3. पावा पावा के मल्ल
4. कुशीनारा के मल्ल
5. मिथिला के विदेह
6. पिप्पलवन के मोरिय
7. ससुमार पर्वत के मांग
8. अलकप्प के बुलि
9. केसपुत्त के कलाम
10. वैशाली के लिच्छवि
जनपद राजधानी
1. मगध : राजगृह (गिरिव्रज)
2. अंग :चंपा
3. काशी : वाराणसी
4. कोशल :अयोध्या/श्रावस्ती
5. वज्जि : मिथिला/विदेह
6. चेदि : शक्तिमती
7. मल्ल : कुशावती
8. कुरु : इंद्रप्रस्थ
9. वत्स : कौशाम्बी
10 पांचाल : अहिच्छत्र/कांपिल्य
11. शूरसेन : मथुरा
12.मत्स्य : विराटनगर
13. अश्मक : पोतना
14. अवन्ति : उज्जयिनी एवं महिष्मती
15. कम्बोज : हाट
16.गन्धार : तक्षशिला
भगवती सूत्र (जैन ग्रंथ) में भी 16 महाजनपदों का उल्लेख किया गया है। जैन सूची में मालवा और बौद्ध सूची के क्रमशः अवन्ति और मल्ल हैं। परन्तु शेष जनपदों में अन्तर है।
मगध साम्राज्य का उदय
पुराणों के अनुसार मगध के सबसे प्राचीन राजवंश का संस्थापक वृहद्रथ था। वह जरासंध का पिता एवं बसु वैद्य उपरिचर का पुत्र था।
मगध की आरम्भिक राजधानी वसुमति या गिरिव्रज की स्थापना का श्रेय वसु को था। वृहद्रथ का पुत्र जरासंध एक पराक्रमी शासक था, जिसने अनेक राजाओ को पराजित किया। रिपुंजय इस वंश (वृहद्रथ) का अंतिम शासक था।
बिम्बिसार (544-492 ई.पू.):
बौद्ध ग्रंथों अनुसार मगध का प्रथम शासक बिम्बिसार था। वह हर्यक वंश का संस्थापक था। बौद्ध एवं जैन ग्रंथ इस वंश को हर्यक वंश कहते हैं। दीपवंश में बिम्बिसार के पिता का नाम बोधिस मिलता है जो राजगृह का शासक था। मत्स्य पुराण में उसका नाम क्षेत्रौजस तथा जैन साहित्य में 'श्रोणिक' कहा गया है।
आरम्भ में गिरिव्रज इसकी राजधानी थी, किन्तु बाद में 'राजगृह' को उसने अपनी राजधानी बनाया।
उसने अपने समय के प्रमुख राजवंशों से वैवाहिक संबंध स्थापित कर अपनी स्थिति सुदृढ़ की। उसने लिच्छवि गणराज्य के शासक चेटक की पुत्री चेलना के साथ विवाह कर मगध की उत्तरी सीमा को सुरक्षित किया। उसने कोशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला के साथ विवाह कर स्थापित किया। इस विवाह के फलस्वरूप दहेज में एक लाख वार्षिक आय का काशी का प्रान्त भी प्राप्त हो गया। उसने मद्र देश (कुरु के समीप) की राजकुमारी क्षेमा के साथ अपना विवाह कर मद्रों का सहयोग तथा समर्थन प्राप्त कर लिया।
जब अवंति का राजा प्रद्योत पांडु रोग (पीलिया) से पीड़ित हुआ तो उसने अपने राज वैद्य जीवक को उसके उपचार के लिए भेजा।
उसने अंग राज्य पर आक्रमण किया। अंग का राजा ब्रह्मदत्त मारा गया और अंग राज्य मगध में मिला लिया गया।
जैन तथा बौद्ध ग्रंथ दोनों ही बिम्बिसार को क्रमशः जैन तथा बौद्ध धर्म का अनुयायी होने का दावा करते हैं। बिम्बिसार की महात्मा बुद्ध से दो बार भेंट हुई थी। बिम्बिसार ने उनका भारी सम्मान किया था और स्वयं ध र्म स्वीकार कर लिया था। उसने बौद्ध विहार बनवाने हेतु एक बाग बौद्ध संघ को समर्पित किया था। उसकी धार्मिक नीति बड़ी उदार थी और उसने जैन तथा बौद्ध दोनों धर्मों को राजकीय सहायता व संरक्षण दिया था।
विद्या-कलाः
राज्य में विद्या-कला को प्रोत्साहन मिलता था। जीवक राज्य का प्रमुख वैद्य था। उसने तक्षशिला में शिक्षा प्राप्त की थी। वह आयुर्वेद की कौमारमृत्य शाखा का विशेषज्ञ था। राजगृह में भवनों का निर्माण प्रसिद्ध वास्तुकार महागोविन्द ने किया था।
अजातशत्रु (492-460 ई.पू.):
अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार की हत्या कर बलपूर्वक सिंहासन पर अधिकार कर लिया। उसे 'कुणिक' कहा जाता था।
कांशी के प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वजिरा का विवाह अजातशत्रु से कर दिया। अजातशत्रु के समय में काशी का प्रान्त अंतिम रूप से मगध में मिला लिया गया।
अजातशत्रु का दूसरा युद्ध वैशाली के लिच्छवियों से हुआ। वज्जि संघ को परास्त करना कठिन कार्य था, अत: मगध के महामंत्री वस्सकार ने कूटनीति से काम लिया। उसने अपने गुप्तचरों को भेजकर वज्जिसंघ में फूट उत्पन्न कर दी।
इस युद्ध में उसने 'महाशिलाकंटक' तथा 'रथमूसल' नामक शस्त्रों का भी प्रयोग किया था। इस विजय के परिणामस्वरूप अजातशत्रु ने वैशाली पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
उसके शासनकाल के आठवें वर्ष में बुद्ध को महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था। उसके शासनकाल में राजगृह की सप्तपर्णि गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था।
उदयिन (लगभग 460-444 ई.पू.):
उदयिन के शासनकाल की सर्वप्रमुख घटना गंगा और सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र नामक नगर की स्थापना है। इसे कुसुमपुर भी कहा जाता है। उसने राजगृह से यहां पर अपनी राजधानी स्थानान्तरित की। वह जैन मतानुयायी था।
शिशुनाग वंश (लगभग 412-344 ई.पू.):
बौद्ध ग्रंथों के अनुसार शिशुनाग ने 18 वर्ष और पुराणों के अनुसार 40 वर्षों तक शासन किया। शिशुनाग के शासनकाल की सबसे प्रमुख घटना अवन्ति के साथ युद्ध है। इस समय तक प्रद्योत की मृत्यु हो चुकी थी। शिशुनाग ने उसे युद्ध में परास्त कर अवन्ति पर अधिकार कर लिया और उसे मगध साम्राज्य का एक भाग बना लिया। शिशुनाग ने अपनी राजधानी वैशाली में बनायी या वैशाली मगध साम्राज्य की दूसरी राजधानी बन गयी।
कालाशोक (काकवर्ण) ने अपनी राजधानी पुनः पाटलिपुत्र में स्थानान्तरित कर दी।इसके बाद पाटलिपुत्र ही मगध की राजधानी रहा। उसके शासनकाल में द्वितीय बौद्ध संगीति हुई थी।
नन्दवंश (344-324/23 ई.पू.):
शिशुनाग वंश के पश्चात नन्दवंश की स्थापना हुई। भारतीय तथा विदेशी दोनों ही साक्ष्य नंदों को शूद्र या निम्न वंशीय प्रमाणित करते हैं। इस वंश की स्थापना उग्रसेन या महापद्म ने की। पुराणों में महापद्म को 'सर्वक्षत्रान्तक' (सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला) और 'द्वितीय परशुराम' कहा गया है।
नन्द राजा ने कलिंग पर आक्रमण किया था और वहाँ पर एक नहर अथवा बाँध का निर्माण किया था और उस देश से एक जिन की मूर्ति ले आया था।
इतिहासकार प्लिनी के अनुसार “शक्ति और वैभव के मामले में प्रासी (पूर्वी प्रदेश) सम्पूर्ण भारत में श्रेष्ठ थी। इसकी राजधानी पालिबोथ्र थी।
" कर्टियस के अनुसार गंगारीदे और प्रासी के शासक अग्रामेश (धननन्द) के पास 20,000 घुड़सवार, 2,00,000 पैदल सैनिक, 2000 रथ और 3000 हाथियों की सेना था।
इस वंश का अतिंम शासक धननन्द था, जो सिकन्दर का समकालीन था। उसे यूनानी लेखकों ने अग्रमीज (उग्रसेन का पुत्र) कहा है। अन्तिम शासक धननंद एक अत्याचारी शासक था। उसके विषय में कहा जाता है कि वह प्रजा पर बहुत अधिक और अनुचित कर लगाता था। उसने चमडे, गोंद, पेड़ और पत्थर पर भी कर लगाया था। उसने 80 कोटि धन गंगा के गर्भ में छुपा कर रखा था।
नन्द शासक जैन धर्मावलम्बी थे। घनानन्द के जैन अमात्य, शकटार तथा स्थूलभद्र थे।
पूर्व मौर्यकालीन गणराज्य
1. कपिलवस्तु के शाक्य
2. रामग्राम के कोलिय
3. पावा पावा के मल्ल
4. कुशीनारा के मल्ल
5. मिथिला के विदेह
6. पिप्पलवन के मोरिय
7. ससुमार पर्वत के मांग
8. अलकप्प के बुलि
9. केसपुत्त के कलाम
10. वैशाली के लिच्छवि
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