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प्रथम विदेशी आक्रमण 





भारत पर पहला विदेशी आक्रमण ईरान के हखामनी वंश ने किया था। साइरस इस वंश का संस्थापक था।


हेरोडोटस, एरियन तथा स्ट्रैबो के अनुसार साइरस ने जेड्रोसिया के रेगिस्तानी मार्ग से होकर भारत पर हमला करने का असफल प्रयास किया।


भारत पर आक्रमण में प्रथम सफलता हखामनी के दारा प्रथम (दारयबहु) को प्राप्त हुआ। उसके तीन अभिलेख बेहिस्तून, पर्सिपोलिस नक्शेरुस्तम में प्राप्त होता है।


दारा तृतीय को सिकंदर ने परास्त कर दिया।


 ईरानी प्रभाव के तहत भारत में खरोष्ठी (दांयी से बांयी लिखी जाती थी) अरमाइक लिपि का प्रचार हुआ।


अशोककालीन स्मारक विशेषकर घंटा के आकार के गुंबज कुछ हद तक ईरानी प्रतिरूपों पर आधारित था।


फारसी शब्द दिपी के लिए अशोक कालीन लेखकों ने लिपी शब्द का प्रयोग किया है।




    सिकंदर का भारत अभियान



     मकदुनियाई शासक सिकंदर (326ईपू.) में बल्ख जीतते हुआ काबुल हिंदुकुश पर्वत पहुंचा। तक्षशिला के शासक आंभी ने परास्त होने के बाद उसे सहयोग प्रदान किया।

     326ईपू. में झेलम नदी के तट  पर पौरव राजा पोरस सिकंदर के बीच वितस्ता का युद्ध (हाइडेस्पीज का युद्ध) हुआ जिसमें पोरस की पराजय हुयी परंतु सिकंदर उसकी वीरता से प्रसन्न हुआ।



     सिकन्दर के आक्रमण के समय सिंधु नदी की घाटी के निचले भाग में शिविगण के पड़ोस में रहने वाला एक गण का नाम अगलस्सोई था। सिकन्दर जब सिंधु नदी के मार्ग से भारत से वापस लौट रहा था, तो इस गण के लोगों से उसका मुकाबला हुआ। उनके द्वारा सामूहिक जौहर का उल्लेख मिलता है। अस्सकेनोई लोगों ने सिकन्दर से जमकर लोहा लिया और उनके एक तीर से सिकन्दर घायल भी हो गया। लेकिन अंत में विजय सिकन्दर की ही हुई। उसने मस्सग दुर्ग पर अधिकार कर लिया और भंयकर नरसंहार के बाद अस्सकेनोई लोगों का दमन कर दिया। इतिहासकार कर्टियस के अनुसार सिकंदर ने संपूर्ण मस्सग आबादी को नष्ट कर दिया। अस्सपेसिओई गण भारत पर सिकन्दर महान के आक्रमण के समय पश्चिमोत्तर सीमा पर कुनड़ अथवा त्रिचाल नदी की घाटी में रहता था। अभिसारेश सिकन्दर के आक्रमण के समय अभिसार जनपद का राजा था।


    ऐसा कहा जाता है सिकंदर नंद वंश के घनानंद की विशाल सेना से डरकर आगे नहीं बढ़ा। हालांकि उसकी सेना ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया था। इसलिए कहा जाता है कि सिकंदर जो अपने शत्रुओं से कभी नहीं हारा, अपनी सेना से हार गया।


     सिकंदर भारत में 19 महीने (326-325 . पू.) रहा। वह फिलिप को शासन सौपकर वापस लौट गया और 323.पू. में बेबिलोन में उसका निधन हो गया।


     सिकंदर के अभियान से चार भिन्न-भिन्न स्थल मार्गों और जलमार्गों के द्वार खुले। सिकंदर ने कई नगरों की स्थापना की; काबुल नदी के तट पर सिकंदरिया शहर, निकैया (विजयनगर) बुकाफेला (अपने प्रिय घोड़े के नमा पर) बुकाफेल झेलम नदी के तट पर था।


     उसने अपने मित्र नियार्कस के नेतृत्व में सिंधु नदी के मुहाने से फरात नदी के मुहाने तक समुद्र का पता लगाने व बंदरगाह खोजने के लिए रवाना किया।


     सिकंदर ने दो लाख सांड यूनान में इस्तेमाल के लिए मकदुनिया भेजे।

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