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शाक्त धर्म

शक्ति की उपासना का सम्प्रदाय वैदिक काल जितना ही प्राचीन है। ऋग्वेद के 10वें मंडल में एक पूरा सूक्त शक्ति उपासना को समर्पित है।

 जबलपुर स्थित चौसठ योगिनी का मंदिर शाक्त धर्म के विकास को दर्शाता है।

 कौलमार्गी व समयाचारी शाक्त उपासना की दो पद्धतियां हैं।

 शाक्त सम्प्रदाय का शैव मत के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है और इसे वैदिक नाम नाना, अंबा, दुर्गा, गौरी, पार्वती तथा अन्य कई नाम दिये गये हैं। 

पुराणों के अनुसार शक्ति की उपासना मुख्यतया काली और दुर्गा की उपासना तक ही सीमित है, जिन्हें महिषासुर-मर्दिनी (महिषासुर का वध करने वाली) शुम्भ और निशुम्भ को मारने वाली आदि जैसे नाम भी दिये गये हैं। उसे 'चामुंडा' भी कहा जाता है क्योंकि उसने चंड और मुंड नामक दानवों का वध किया था। कुछ लोगों का कहना है कि सात शक्तियाँ नामशः बाही, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नृसिंही और एन्द्री उन देवताओं की शक्तियों या भावनाओं का प्रतीक हैं जिन पर उनके नाम रखे गये हैं। 

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार जिस देवी ने महिषासुर का वध किया था, वह शिव, विष्णु और ब्रह्म के तेज से मिलकर बनी थी और अन्य सभी देवताओं ने उसके अंग-प्रत्यंगों के निर्माण के लिए अपना-अपना अंश दिया था।


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